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Nofap Hindi मैथुन से सर्वनाश

Discussion in 'Fitness' started by Deleted Account, May 6, 2021.

  1. Nofap Hindi दोस्तों, मैं यह पोस्ट हिंदी में लिख रहा हूँ क्योंकि मैं पाया है की हमारे बहुत से भाई को नोफैप की जानकारी इंग्लिश न आने के वजह से छूट जाती है, इसलिए मैंने हिंदी में जानकारी शेयर करने की सोच रहा हूँ। मेरे विषय है मैथुन से सर्वनाश!!!

    मैथुन के अति-भोग के अनर्थकारी परिणाम

    सभी सुखों में सर्वाधिक ओजहीन करने तथा नैतिक पतन लाने वाला है यौन-सुख । विषय-सुख के साथ विविध दोष लगे रहते हैं। इसके साथ विविध प्रकार के पाप, दुःख, दुर्बलताएँ, आसक्तियाँ, दास-मनोवृत्ति, अदृढ़ संकल्प -शक्ति, कठोर श्रम तथा संघर्ष , लालसा तथा मानसिक अशान्ति लगे होते हैं। सांसारिकव्यक्तियों पर यद्यपि विविध दिशाओं से आघात, पाद-प्रहार, मुष्टि-प्रहार आदि होते हैं; पर उनको कभी भी होश नहीं आता । गलियों में फिरने वाले कुत्ते पर प्रत्येक बार पथराव होने पर भी वह घरों में चक्कर मारना बन्द नहीं करता है।

    पश्चिम के प्रख्यात चिकित्सक कहते हैं कि वीर्य-क्षय से, विशेषकर तरुणावस्था में वीर्य-क्षय से विविध प्रकार के रोग उत्पन्न होते हैं। वे हैं : शरीर में व्रण, चेहरे पर मुँहासे अथवा विस्फोट, नेत्रों के चतुर्दिक् नीली रेखाएँ, दाढ़ी का अभाव, धँसे हुए नेत्र, रक्तक्षीणता से पीला चेहरा, स्मृति-नाश, दृष्टि की क्षीणता, मूत्र के साथ वीर्य-स्खलन, अण्डकोश की वृद्धि, अण्डकोशों में पीड़ा, दुर्बलता, निद्रालुता, आलस्य, उदासी, हृदय-कम्प, श्रासावरोध या कष्टश्वास, यक्ष्मा, पृष्ठशूल, कटिवात, शिरोवेदना, सन्धि-पीड़ा, दुर्बल वृक् क, निद्रा में मूत्र निकल जाना, मानसिक अस्थिरता, विचार-शक्ति का अभाव, दुःस्वण, स्वनदोष तथा मानसिक अशान्ति ।

    वीर्य-शक्ति की क्षति के पश्चात् जो अनर्थकारी उत्तर प्रभाव पड़ता है, उस पर सावधानीपूर्वक ध्यान दें। वीर्य-शक्ति को अनेकानेक बार अकारण ही नष्ट करने से लोग शरीर, मन तथा नैतिक दृष्टि से दुर्बल हो जाते हैं। शरीर तथा मन
    कर्मठतापूर्वक कार्य करने से इनकार कर देते हैं। शारीरिक तथा मानसिक अकर्मण्यता होती है। आपको अधिक थकान तथा कमजोरी का अनुभव होता है। आपको शक्ति की क्षति-पूर्ति के लिए दुग्धपान तथा फल और कामोद्दीपक अवलेह के सेवन की शरण लेनी होगी। स्मरण रहे कि ये पदार्थ कभी भी पूर्णतया क्षति की प्रतिपूर्ति नहीं कर सकते | एक बार नष्ट हुई तो सदा के लिए नष्ट हुई। आपको नीरस तथा विषण्ण जीवन घसीटना होगा। शारीरिक तथा मानसिक-शक्ति दिन-प्रतिदिन क्षीण होती जाती है ।

    जिन व्यक्तियों ने अपना वीर्य अत्यधिक नष्ट कर डाला है, वे बहुत ही चिड़चिड़े हो जाते हैं। सामान्य बातें भी उनके मन को अशान्त बना देती हैं। जिन्होंने ब्रह्मचर्य-त्रत का पालन नहीं किया है, वे क्रोध, ईर्ष्या, आलस्य तथा भय के दास बन जाते हैं। यदि आपने अपनी इन्द्रियों को नियन्त्रित नहीं किया है तो आप ऐसे मूर्खतापूर्ण कार्य करने का साहस कर बैठेंगे जिन्हें बच्चे भी करने का साहस नहीं करेंगे ।

    जिसने जीवन-शक्ति का अपव्यय किया है वह सहज में चिड़चिड़ा बन जाता है । वह अपना मानसिक सन्तुलन खो बैठता है तथा सामान्य बातों के लिए विस्फोटक प्रकोप की अवस्था में जा पहुँचता है। प्रकुपित होने पर व्यक्ति अभद्र व्यवहार करता है | वह नहीं जानता कि वह वस्तुतः कर क्या रहा है; क्योंकि वहअपनी विचार तथा विवेक-शक्ति को खो बैठता है। वह स्वेच्छानुसार कोई भी कार्य कर बैठता है। वह अपने माता-पिता, गुरु तथा सम्मान्य लोगों का भी
    अपमान करता है । अतः जो साधक सदव्यवहार के विकास के लिए प्रयलशील है उसके लिए यह उचित है कि वह वीर्य की रक्षा अवश्यमेव करे । इस दिव्य शक्ति का परिरक्षण सुदृढ़ संकल्प -शक्ति, सदृव्यवहार, आध्यात्मिक उत्कर्ष तथा अन्ततः श्रेय अथवा मोक्ष को प्राप्त कराता है ।

    अत्यधिक मैथुन से शक्ति अति-मात्रा में निकल जाती है। नवयुवक इस तरल द्रव वीर्य के महत्त्व का स्पष्ट रूप से अनुभव नहीं करते । वे अमर्यादित मैथुन से इस सक्रिय शक्ति को नष्ट करते हैं। उनकी स्नायुओं को अधिक गुदगुदी होती है। वे मदोन्मत्त हो जाते हैं और क् या ही गम्भीर भूल करते हैं! यह अपराध है और इसके लिए मृत्युदण्ड अपेक्षित है। वे आत्महत्यारे हैं। एक बार नष्ट हो जाने पर इस शक्ति की किसी अन्य साधन से कभी भी क्षतिपूर्ति नहीं की जा सकती । यह संसार में सर्वाधिक बलवती शक्ति है। एक मैथुन-क्रिया मस्तिष्क तथा स्नायु-तन्त्र को पूर्णतया छिन्न-भिन्न कर डालती है। लोग मूर्खतावश यह समझते हैं कि वे खोयी हुई शक्ति को दुग्ध, बादाम तथा मकरध्वज के सेवन से पुनः प्राप्त कर लेंगे । यह एक भूल है । आपको, भले ही आप विवाहित व्यक्ति हैं, इसकी प्रत्येक बूँद के संरक्षण का यथाशक्य प्रयास करना चाहिए। आत्म-साक्षात्कार ही आपका लक्ष्य है।

    एक मैथुन में अपव्यय होने वाली शक्ति दस दिन के शारीरिक कार्य में व्यय होने वाली शारीरिक शक्ति अथवा तीन दिन के मानसिक कार्य में प्रयुक्त होने वाली मानसिक शक्ति के तुल्य होती है। ध्यान दीजिए कि यह प्राणाधार द्रव,
    वीर्य कितना मूल्यवान् है ! इस शक्ति का अपव्यय न कीजिए | इसका परिरक्षण बहुत सावधानीपूर्वक कीजिए। इससे आपको अद्भुत ओजस्विता प्राप्त होगी । वीर्य के प्रयुक्त न करने पर वह ओज-शक्ति में रूपान्तरित हो जाता है तथा मस्तिष्क में सश्चित रहता है। पाश्चात्य चिकित्सकों को इस विशिष्ट विषय की अल्प-जानकारी ही है। आपके अधिकांस रोगों का कारण वीर्य का अत्यधिक अपव्यय ही है ।

    स्वप्न-दोष तथा स्वैच्छिक मैथुन-एक महत्त्वपूर्ण अन्तर

    एक मैथुन-क्रिया स्नायु-तन्त्र को छिल्न-भिन्न कर डालती है। इस क्रिया में सम्पूर्ण स्नायु-तन्त्र झकझोर उठता अथवा उत्तेजित हो जाता है। इसमें शक्ति की अत्यधिक क्षति होती है। मैथुन में अत्यधिक शक्ति नष्ट होती है; किन्तु जब
    स्वप्नावस्था में वीर्यपात होता हैः तब ऐसा नहीं होता। स्वप्नदोष में केवल शिश्न-ग्रन्थियों के रस का निःस्नाव होता है। यदि इस प्राणाधार द्रव, वीर्य की क्षति होती भी है तो यह अपक्षय अधिक नहीं होता है । स्वप्नदोष में वास्तविक
    तत्त्व बाहर नहीं आता है। स्वप्नदोष के समय जो पदार्थ बाहर आता है, वह थोड़े-से वीर्य के साथ शिश्न-ग्रन्थियों का पतला रस मात्र होता है । जब स्वप्नदोष होता है, मन जो आन्तरिक सूक्ष्म शरीर में कार्यरत था, अकस्मात् उत्तेजित दशा में स्थूल शरीर में प्रवेश करता हैं। यही कारण है कि सहसा वीर्यपात हो जाता है ।

    स्वप्न दोष से कामवासना उद्दीप्त नहीं होती; परन्तु सच्चे साधक के विषय में स्वैच्छिक मैथुन उसकी आध्यात्मिक उन्नति में अत्यन्त हानिकारक होता है। इस क्रिया सें उत्पन्न संस्कार बहुत गहरे होते हैं और ये अवचेतन मन में पहले से ही सन्निहित पूर्ववर्ती संस्कारों की शक्ति को तीव्र करते अथवा सुदृढ़ बनाते तथा कामवासना को उंद्दीप्त करते हैं। यह शनैःशनैः बुझ रही अग्नि में घी डालने के समान है। इस नये संस्कार को मिटाना एक श्रमसाध्य कार्य है। आपको मैथुन का पूर्णतया त्याग कर द्वेना चाहिए। मन आपको असत् परामर्श दे कर नाना प्रकार से धोखा देने का प्रयास करेगा | सावधान रहें | इसकी वाणी को न सुनें । इसके स्थान में अन्तःकरण की वाणी को, आत्मा की वाणी को अथवा विवेक की वाणी को सुनने का प्रयास करें ।

    रक्तहीन शरीर वाले युवक

    मैथुन में अत्यधिक शक्ति नष्ट होती है। स्मरण-शक्ति का हास, असामयिक वृद्धावस्था, नपुंसकता, नाना प्रकार के नेत्र-रोगों तथा विविध स्नायविक रोगों के लिए इस प्राणाधार द्रव की भारी क्षति ही उत्तरदायी मानी जाती है| हृष्ट-पुष्ट तथा ओज-सम्पन्न, फुरतीले तथा द्रुत पग से गिलहरी की भाँति इधर-उधर उछलने-कूदने के स्थान में हमारे अधिकांश नवयुवक इस प्रणाधार द्रव, वीर्य की क्षति के कारण रक्तहीन, निष्परभ-मुखों से लड़खड़ाते हुए पैरों से चलते दिखायी पड़ते हैं जो निश्चय ही अत्यधिक शोचनीय बात है । कुछ व्यक्ति तो इतने कामुक तथा दुर्बल हैं कि सत्री के विचार, दर्शन अथवा स्पर्श मात्र से उनका वीर्यपात हो जाता है । उनकी दशा दयनीय है।

    इन दिनों हम क्या देखते हैं? लड़के तथा लड़कियाँ, पुरुष तथा स्त्रियां दूषित विचार ,दुर्वासना तथा स्वल्प विषय-सुख के सागर में निमग्न हैं। यह निश्चय ही अत्यन्त खेदजनक बात है । इनमें से कुछ लड़कों का वृत्तान्त सुन कर वास्तव में दिल दहल जाता है | महाविद्यालयों के अनेक छात्र मेरे पास स्वयं आये तथा अप्राकृतिक साधनों के परिणामस्वरूप वीर्य की अत्यधिक क्षति से उत्पन्न अपने उदास तथा विषादमय दयनीय जीवन के विषय में बताया। कामोत्तेजना तथा कामोन्माद के कारण उनकी विवेक-शक्ति नष्ट हो गयी है। जो शक्ति आप कई सप्ताह तथा महीनों में प्राप्त करते हैं उसे स्वल्प, क्षणिक विषय-सुख के लिए क्यों नष्ट करते हैं !


    दोस्तों, मैंने टाइमपास के लिए एक ब्लॉग लिखना शुरू किया है , आशा है आप लोग इस ब्लॉग का समय समय पर अवलोकन कर मुझे प्रोत्साहित करे। Nofap in Hindi
     
    Last edited by a moderator: May 11, 2021
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  2. Kung_fu_panda_

    Kung_fu_panda_ Fapstronaut

    Purely hindi..... Hamko Hinglish language achha lagta , pure hindi me maja nahi ata
     
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